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एक देश, एक चुनाव: क्रियान्वयन आसान नहीं होगा 

 देश में लोक सभा और विधान सभा के चुनाव एकसाथ कराने के प्रस्ताव को केन्द्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। केन्द्र सरकार ने कहा है कि संसद शीतकालीन सत्र में विधेयक लाएगी। एक राष्ट्र, एक चुनाव का नारा जितना आकर्षक लगता है, इसे लागू करना उतना ही मुश्किल है। सभी 28 राज्यों और कुछ […]

सीआरपीसी के तहत मुस्लिम महिलाएं भी भरण-पोषण की हकदार 

विवेक वार्ष्णेय सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा का देने के लिए एक अहम फैसला दिया है। सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा-भत्ता पाने की हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिलाओं के लिए 1986 में लाया गया कानून उन्हें […]

गिरफ्तारी का आधार बताना लाजमी हो गया है पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने भारत के आपराधिक न्यायशास्त्र की तस्वीर बदल दी है। प्रबीर पुरकायस्थ बनाम दिल्ली सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने गिरफ्तारी का आधार बताना लाजमी कर दिया है। किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस या जांच एजेंसी को यह लिखित रूप से बताना होगा […]

चुनावी चंदे का ब्यौरा जानने का हक है मतदाता को

चुनावी चंदा या इलैक्ट्रोरल बांड पर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनीतिक दलों और औद्योगिक घरानों के बीच के गठजोड़ से पर्दा उठाने का एक साहसिक प्रयास है। चंदा एकत्र करने में पारदर्शिता के अभाव के चलते सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने छह साल पुरानी चुनावी चंदे की योजना को असंवैधानिक करार दिया। […]

उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता के जरिए लिव-इन रिश्तों पर पहरेदारी 

उत्तराखंड विधान सभा द्वारा पारित समान नागरिक संहिता विधेयक विवाह, तलाक, लिव-इन, उत्तराधिकार और बच्चों को गोद लेने के कानून में एकरूपता लाने का प्रयास है ताकि इसे सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू किया जा सके। संविधान के अनुच्छेद 44 में पूरे देश में समान नागरिक संहिता की बात कही गई […]

आजीवन कारावास की सजा भुगतने वाले कैदियों की समयपूर्व रिहाई के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार

लम्बे समय से जेल की सलाखों में कैद अपराधियों को समाज की मुख्य धारा में वापस लाने के लिए सजा में छूट(रेमीशन) दी जाती है। जेल से बाहर आकर वह सामान्य जीवन गुजार सके, इसके लिए देश के अलग-अलग राज्यों ने अपनी-अपनी गाइडलाइंस बनाई हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के दंगों से संबंधित […]

नए फौजदारी कानूनों को लागू करने में कई चुनौतियां

नए फौजदारी कानूनों को लागू करने में कई चुनौतियां केन्द्र सरकार ने फौजदारी कानूनों में बदलाव करने का साहसिक कदम उठाया है। भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 तथा भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम 2023 संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल कर चुके हैं। यह तीनों कानून […]

विधेयकों पर चुप्पी नहीं साध सकते राज्यपाल

राज्य की विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के अधिकारों पर अहम फैसला दिया है। राज्यपाल लम्बे समय तक विधेयकों को पेंडिंग नहीं रख सकते। संघीय ढांचे में राज्यपाल के अधिकार बहुत सीमित हैं। राज्यपाल उन्हीं विषयों पर अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं जहां उन्हें […]

निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए विधेयक में नए प्रावधान

एक कानूनी प्रक्रिया के तहत निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने का विधेयक संसद में पेश तो कर दिया गया है लेकिन इस पर अभी चर्चा नहीं हो पाई है। संसद में चर्चा होने से पहले ही यह विधेयक सुर्खियों में आ गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचन आयोग का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। […]

पीरियड लीव: महिलाओं के कैरियर में सहायक या बाधक

  पूरे भारत में सिर्फ बिहार में पीरियड लीव का प्रावधान पूरे भारत में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां राज्य सरकार कामकाजी महिलाओं को माहवारी के लिए हर महीने दो दिन का अवकाश देती है। बिहार सरकार ने 1992 में अधिसूचना के जरिए महिला कर्मचारियों को हर महीने लगातार दो दिन विशेष अवकाश […]

दिल्ली और केन्द्र सरकार के बीच अधिकारों की जंग: सवाल जवाबदेही का

सुप्रीम कोर्ट के 11 मई, 2023 के फैसले को दस दिन भी नहीं बीते थे कि केन्द्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए संविधान पीठ के सर्वसम्मति से दिए गए निर्णय को निष्क्रिय कर दिया। दिल्ली की ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण को लेकर तकरीबन नौ साल से चली आ रही जंग खत्म होने का नाम नहीं ले […]

जनप्रतिनिधित्व कानून का बढ़ता शिकंजा

लोकतंत्र को अपराधियों की छाया से मुक्त करने के प्रयास में सुप्रीम कोर्ट ने दस साल पहले एक अहम फैसला दिया था। लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दागी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बरकरार रखने का विशेषाधिकार समाप्त कर दिया था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार […]

प्रतिभाओं को चुनने में कॉलेजियम की अग्निपरीक्षा

फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की नियुक्तियां हुई। नियुक्तियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठï वकील के बयान ने कानूनी जगत में हलचल मचा दी। वरिष्ठ वकील का कहना था कि इनमें से एक जज ऐसे हैं जिन्होंने हाई कोर्ट के अपने समूचे कार्यकाल में एक भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं दिया। […]

कॉलेजियम बनाम एनजेएसी: एक विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पिछले लगभग 30 वर्ष से हाई कोर्ट और शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्तियां करता आ रहा है। 1993 में अपने ही फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार सरकार से छीनकर अपने पास ले लिया था। न्यायाधीशों की नियुक्तयों का कॉलेजियम सिस्टम शुरू से ही […]