पीरियड लीव: महिलाओं के कैरियर में सहायक या बाधक

विवेक वार्ष्णेय
पूरे भारत में सिर्फ बिहार में पीरियड लीव का प्रावधान
पूरे भारत में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां राज्य सरकार कामकाजी महिलाओं को माहवारी के लिए हर महीने दो दिन का अवकाश देती है। बिहार सरकार ने 1992 में अधिसूचना के जरिए महिला कर्मचारियों को हर महीने लगातार दो दिन विशेष अवकाश का प्रावधान किया है। पिछले 31 साल से यह नियम लागू है।
इस साल केरल में भी छात्राओं के लिए हर माह दो दिन का अवकाश शुरू किया गया। हालांकि केरल रजस्वला अवकाश के मामले में सबसे आगे रहा है। कोचीन(अब ऐराकुलम) की रियासत ने एक सदी पूर्व 1912 में छात्राओं को परीक्षा के दौरान माहवारी अवकाश की सुविधा दी थी।  वार्षिक परीक्षा के दौरान यदि किसी छात्रा को मासिक धर्म के कारण असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता था तो उसे इम्तिहान में बैठने के लिए मजबूर नहीं किया जाता था। उसकी परीक्षा बाद में ले ली जाती थी।
मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत दी जा सकती है पीरियड लीव
भारत सरकार ने संसद के जरिए मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 लागू किया। यह कानून अंतरराष्ट्रीय
श्रम संगठन(आईएलओ) संरक्षण संधि 1952, बॉम्बे मेटरनिटी एक्ट, 1929, खदान मातृत्व अधिनियम 1941 तथा कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948 के प्रावधानों को ध्यान में रखकर लाया गया था। कानून के अमल में आने से गर्भवती महिलाओं को इसका लाभ मिलना शुरू हुआ। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधानों को सेंट्रल सिविल सर्विसेज(सीसीएस)अवकाश नियमावली में शामिल किया गया। सीसीएस नियमावली के तहत महिला सरकारी कर्मचारी को चाइल्ड केयर लीव के रूप में उसके सम्पूर्ण सेवाकाल के दौरान 730 दिन का अवकाश दिया जाता है। महिला को उसके पहले दो बच्चों के लिए यह छुट्ट दी जाती है। बच्चे के 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने तक यह सुविधा दी जाती है। सरकार के इस कदम को कामकाजी महिलाओं के अधिकारों के प्रति एक सकारात्मक कदम माना गया है। इसी नियम के अंतर्गत पिता को भी 15 दिन का पितृत्व अवकाश दिया जाता है।