विवेक वार्ष्णेय
फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की नियुक्तियां हुई। नियुक्तियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठï वकील के बयान ने कानूनी जगत में हलचल मचा दी। वरिष्ठ वकील का कहना था कि इनमें से एक जज ऐसे हैं जिन्होंने हाई कोर्ट के अपने समूचे कार्यकाल में एक भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं दिया। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग(एनजेएसी) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान जून 2015 में भी सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व न्यायाधीशों के नाम सुर्खियों में रहे थे। तत्कालीन अटार्नी जनरल ने भरी अदालत में पूर्व न्यायाधीशों का नाम लेकर कहा था कि उन्होंने हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान कुछेक ही जजमेंट दिए लेकिन फिर भी उन्हें पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।
कॉलेजियम सिस्टम की उपयोगिता, उसकी सफलता और असफलता को मापने के लिए इन दो तथ्यों का जिक्र जरूरी है। इन तथ्यों से एक अहम सवाल उठता है कि जब कॉलेजियम सिस्टम को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए इतना अहम बताया जा रहा है और यह भी कहा जाता है कि उम्मीदवार की काबिलयत को परखने में जज ही सर्वाधिक सक्षम हैं तो फिर अक्षम या कम योग्यता रखने वाले वकील जज की पदवी तक कैसे पहुंच जाते हैं, या हाई कोर्ट के लम्बे कार्यकाल के दौरान अपनी औसत कार्यक्षमता के बावजूद कुछ जज सुप्रीम कोर्ट तक प्रमोशन कैसे पा जाते हैं।
नियुक्तियों में ‘गिव एंड टेक’ के आरोप में कितनी सच्चाई
कॉलेजियम पर भाई-भतीजावाद और ‘गिव एंड टेक’ के आरोप भी लगते रहे हैं। कॉलेजियम के सदस्य पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों के परिजन को तरजीह देते हैं, यह आरोप कॉलेजियम पर लगातार लगते रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जिन तीन न्यायाधीशों का जिक्र गया है, वह कॉलेजियम के माध्यम से ही देश की शीर्षस्थ अदालत के जज बने। कॉलेजियम ने उन्हें किस आधार पर चुना? हाई कोर्ट में उनके कार्यकाल का आकलन करके या किसी अन्य वजह से?
भारत के पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमण का अपनी सेवानिवृत्ति पर दिया गया सार्वजनिक बयान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। तत्कालीन सीजेआई ने कहा था कि क्रिकेट के मैच में दर्शक हर गेंद पर छक्का चाहते हैं लेकिन बल्लेबाज हर गेंद पर छक्का नहीं मार सकता। उसे गेंद को देखकर ही शॉट लगाना होता है। कॉलेजियम द्वारा नियुक्तियों के संदर्भ में उन्होंने यह बात कही थी।