इंफ़ोरमेशन टेकनोलॉजी 2021 के नियमों की पड़ताल

लेखन: भाग्यनगर विनीत श्रीवास्तव

सम्पादन : सारा वर्धन, रिया सिंह राठौर

 

21वीं शताब्दी में दुनिया में हुए क्रांतिकारी डिजिटल बदलाव ने जीवन के हर क्षेत्र में काफ़ी प्रभाव डाला है। लेकिन इस बदलाव का असर विभिन्न देशों में एक समान नहीं है। सस्ते और वहनीय गेजेट और इंटरनेट की सहज उपलब्धता की वजह से भारत में डिजिटल क्रांति संभव हो पायी है। भारत में तक़रीबन 450 मिलीयन मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता हैं जिन्हें सबसे सस्ता डेटा उपलब्ध है ( राव 2019) । हाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार भारत में 53 करोड़ वॉटसएप और 41 करोड़ फ़ेसबुक उपभोक्ता हैं ( चक्रवर्ती 2021) जिनकी ख़बरों के लिए सोशल मीडिया पर बहुत ज़्यादा निर्भरता है ( पियू रिसर्च सेंटर 2018; इनग्राम 2015)

2019 के तहसीन पूनावाला केस से सुप्रीम कोर्ट ने ये दोहराया कि किसी भी फ़ेक न्यूज़ या भड़काऊ वॉटसएप फ़ॉरवर्ड की वजह से अगर कोई घटना होती है तो उसके लिए अग्रिम, दोषनिवारक और दंडनीय कार्यवाही होगी। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए हैं कि सामाजिक सद्भाव को नुक़सान पहुँचाने वाले हिंसात्मक कंटेंट को सोशल मीडिया से बिल्कुल दूर रखा जाए। इस संदर्भ में भारत सरकार ने फ़रवरी 2021 में इंटरमिडियरी गाइडलाइन बनाई हैं और अपने अधिकारों को इंफ़ोरमेशन टेक्नोलोजी एक्ट 2000 के अंतर्गत सुनिश्चित किया है।

इन संशोधित गाइडलाइन के द्वारा डिजिटल मीडिया पर भारत सरकार, दोषनिवारक और दंडनीय नियमों से अधिकारिक दख़ल रखती है (मेनसेल 2015)। इन गाइडलाइनों की वजह से कई ऑनलाइन न्यूज़ मीडिया एजेंसियों  और सोशल मीडिया इंटरमीडीयरी जिनके पास डेटा मोनोपॉली है जैसे फ़ेसबुक, ट्विटर और वॉटसएप के बीच असंतोष फैला है। लेकिन ये ग़ौर करने वाली बात है कि ये नियम सिर्फ़ भारत के लिए कुछ अलग नहीं हैं। डिजिटल स्पेस में डिजिटल सोवरेनिटी को बनाए रखने के लिए नियमों और गाइडलाइन के प्रति एक बढ़ता हुआ ट्रेंड है। संशोधित IT नियम जिसे इंफ़ोरमेशन टेक्नोलोजी 2021 के नाम से जानते हैं उसके तीन हिस्से हैं और वो प्रमुख तौर पर सोशल मीडिया इंटरमिडीयरी और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म जैसे नेटफलिक्स, एमेज़ोन प्राइम, हॉटस्टार और डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करता है।

 

सोशल मीडिया मध्यस्थततो का नियंत्रण

सोशल मीडिया मध्यस्थततो को इंफ़ोरमेशन एंड टेक्नोलोजी एक्ट 2020 , IT Act के सेक्शन 79 के अधीन कुछ सुविधाएँ दी गयी हैं,जिसे सेफ़ हारबर प्रोटेक्शन के नाम से जानते हैं। इस क़ानून के हिसाब से यदि मध्यस्थ या intermediary सेक्शन 79 के अनुरूप कार्य कर रहे हैं तो उन्हें उनके द्वारा प्रसारित सूचना की क़ानूनी ज़िम्मेदारी से मुक्त माना जाता है (;Economic and Political Weekly 2021) । 2021 फ़रवरी की गाइडलाइन में  2011 की गाइडलाइन से जो परिवर्तन किया गया है वो है सोशल मीडिया मध्यस्थ या intermediary की IT Act के अधीन सेफ़ हार्बर प्रोटेक्शन हासिल करने की ज़रूरत।

1996 के United States Communication Decency Act (CDA) को सेफ़ हार्बर प्रोटेक्शन सिद्धांत का आधार माना जा सकता है। CDA इंटरनेट टेक्नोलोजी को इंडस्ट्री के विकासशील चरण में होने की वजह से

दायित्वों से छूट का प्रावधान कराता है । लेकिन तब से अब में काफ़ी कुछ बदल गया है क्योंकि आजकल ज़्यादातर देश डेटा एकाधिकार की कोशिशों में लगे हुए हैं। ऐसे डेटा दिग्गज ना सिर्फ़ हर साल करोड़ों डॉलर कमाते हैं बल्कि सरकार से अपनी मनमानी शर्तें मनवाते हैं। ये आचरण दक्षिण ग्लोब में दिखता है। सोशल मीडिया मध्यस्थतो की बढ़ती ताक़त और बाक़ी पारम्परिक मीडिया प्लेटफ़ार्म के मुक़ाबले में कोंटेंट पोस्ट करने पर जवाबदेही ना होने की सुविधा काफ़ी घातक होती है।

2021 के अलेक्सा के ट्रेफ़िक इनसाइट के मुताबिक़, सोशल मीडिया मध्यस्थ जैसे कि गूगल, फ़ेसबुक, एमेज़ोन , ज़ूम उन टॉप 10 वेबसाइट में से हैं जिनका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भारतीय करते हैं। सोशल मीडिया किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत या फिर राजनीतिक मुद्दे के विमर्श के लिए सबसे सशक्त माध्यम है। ज़्यादातर मध्यस्थ लोगों को मुफ़्त सेवा देते हैं और अपने उपभोक्ताओं का डेटा इकट्ठा करते हैं। ये विशाल डेटा – जो कि अति विशाल एलेक्ट्रोनिक फ़ाइल के रूप में होता है वो लोगों द्वारा और उनके बारे में होता है, उनके बात व्यवहार से सम्बंधित होता है( लोसिफ़ीदिस एंड एंडरियु 2020) – ये ना सिर्फ़ व्यापक छटाई के बाद व्यक्तिगत विज्ञापन के लिए इस्तेमाल होता है बल्कि व्यक्ति विशेष की सोच को भी वस्तुनिष्ठ बना देता है। बड़ी तकनीकी कम्पनियों के निगरानी या निरीक्षक कैपिटल्जम को ज़्यादा तूल देने की ज़रूरत नहीं है , ख़ासकर ऐसे समय में जब ये वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि एक यूज़र की लाइक उसके व्यक्तित्व का उसके परिवार और घनिष्ठ मित्रों से भी बेहतर आकलन कर सकती ( यूयू, कोसिंसकी एवं सिटलवेल 2017) । निरीक्षक कैपिटल्जम का सबसे ज़्यादा कुटिल इस्तेमाल राजनीतिक खेमे में ब्रेकजिट और अमेरिकी चुनाव के दौरान हुआ , जब ये आरोप लगा कि फ़ेसबुक ने लोगों के आचरण को राजनीतिक फ़ायदे के लिए धूर्तता से इस्तेमाल किया।

सोशल मीडिया की तकनीक में इसकी शुरुआत के समय से अब तक काफ़ी बदलाव आ चुका है। एलगोरिथम और आरटीफीशियल इंटेलीजेंस यूज़र की लाइक और डिस्लाइक की बदौलत जानकारी को व्यक्तिपरक बनाती है। पारम्परिक मीडिया आउट्लेट जो किसी भी चीज़ को पब्लिश करने से पहले चेक और बेलेंस की प्रक्रिया से गुज़रता है उसके विपरीत सोशल मीडिया यूज़र को फ़िल्टर बब्बल ट्रेप में फाँसता है (पेरिसर 2011) । फ़ेसबुक का शेयर बटन, ट्विटर में समान मुद्दे पर हुई ट्वीट को जोड़ने के लिए हेशटेग और वॉटसएप और अन्य मेसेज सर्विस में फॉरवरड के विकल्प ने सोशल मीडिया के तरीक़े को बदल दिया है और नेटवर्क पब्लिक जो नेटवर्क तकनीक से बनी है वो इसका फ़ायदा उठा रहे हैं (बॉयड 2014) । सोशल मीडिया पर फ़ेक न्यूज़ और ट्रोल पेज , सेफ़ हारबर प्रोटेक्शन पोलिसी के पुनर्मूल्याँकन की ज़रूरत महसूस करता है।

फ़रवरी 2021 में केंद्र सरकार द्वारा रेखांकित IT गाइडलाइन के मुताबिक़ सोशल मीडिया इंटरमिडियरी को सेफ़ हारबर प्रोटेकशन देने वाली ज़रूरी शर्तों को दोबारा जाँचने की ज़रूरत है। नए नियम के अनुसार सोशल मीडिया इंटरमिडियरी को अपने यूज़र को नियम क़ायदों में बदलाव की सूचना , प्राइवेसी पॉलिसी या फिर यूज़र अग्रीमेंट या कोई भी परिवर्तन हो तो उसकी जानकारी देनी होगी। ( इंफ़ोरमेशन टेक्नोलोजी रूल 2021 ) गाइडलाइन के नियम 3 के अनुसार सोशल मीडिया इंटरमिडियरी अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभायेंगे, साथ साथ किसी भी ग़ैर क़ानूनी सूचना को तुरंत हटा देंगे। इस नियम से एक नए सोशल मीडिया इंटरमिडियरी की श्रेणी भी बनी है, जो  ऐसा कोई भी प्लेटफ़ॉर्म हो सकता है जिसके 50 लाख से ज़्यादा यूज़र हों।

ऐसे इंटरमिडियरी को शिकायत निवारण व्यवस्था भी रखनी होगी और एक चीफ़ कोंप्लायंस आफ़िसर ( जो नियम क़ानून के अनुपालन के लिए ज़िम्मेदार हो), एक नोडल सम्पर्क अधिकारी, और एक शिकायत निवारण अधिकारी ( शिकायतों के निपटारे के लिए उत्तरदायी )।रुल 4 के सब-रुल 2 के अनुसार मेसेज सर्विस जैसे वॉटसएप, टेलिग्राम और सिग्नल को मेसेज के पहले ओरिजिनेटर को पहचानना होगा। ओरिजिनेटर की पहचान का अर्थ है एंड टू एंड इंक्रिपशन जो यूज़र की निजता को सुरक्षित करता है उससे समझौता करना। साथ हीं महत्वपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के लिए सब रुल( 4), 5 के अधीन ये अध्यादेश है कि वो ऐसे तकनीकी क़दमों का इस्तेमाल करें, जिसमें स्वचालित टूल और अन्य प्रक्रियाए हों जो कि रेप, बाल यौन शोषण के स्पष्ट या अस्पष्ट तरीक़ों की तुरंत पहचान कर सके ( इंफ़ोरमेशन टेक्नोलोजी रुल 2021) । जो इंटरमीडियरी इन नियमों का पालन नहीं करेंगी उनके ऊपर से रुल 7 के तहत सेफ़ हार्बर प्रोटेकशन हटा लिया जाएगा। दूसरे शब्दों में नियमों की अवमानना इंटरमिडियरी को क़ानूनी तौर पर किसी भी अवैधानिक कोंटेंट पोस्ट किए  जाने के लिए उत्तरदायी मानेगी।

ऊपर चर्चा किए गए नियमों के प्रावधानों का प्रयास डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से होने वाले नुक़सान को कम करना है, जिसमें ना सिर्फ़ वाईरल फ़ेक न्यूज़ को चेक करना बल्कि बड़े सोशल मीडिया इंटरमिडियरी कि नुमाइशी प्रभुत्व को ख़त्म करना जो राष्ट्रीय प्रभुत्ता से भी मनमानी करते हैं। लेकिन जो सवाल हमारा ध्यान खींचता है वो ये कि इन सुधारों में यूज़र का क्या फ़ायदा है। केंद्र सरकार इस को डिजिटल संप्रभुता हासिल करने का क़दम मानती है, ख़ासकर उसके नागरिकों और उनकी सुरक्षा के लिए। ये नियम उस समय आया है जब सरकार सिविल लिबरटी पर हमला कर अपने आप को किसी भी विरोध के लिए निर्दोष साबित करने में लगी हुई है। ग़ैर संवैधानिक गतिविधि निरोधक क़ानून Unlawful Activities Prevention Act UAPA के अंदर कितने ही विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं को सरकार ने दोषी मान बुक किया है और जेल में भी डाला है (तनखा 2021) । एकोनोमिक इंटेलीजेंस यूनिट (2020) डेमोक्रेसी इनडेकस, के अनुसार भारत का रैंक ग्लोबल स्तर पर 53 वें नम्बर पर गिर गया है और ये एक नाकाम डेमोक्रेसी साबित हो चुका है।

IT गाइडलाइन में कई अस्पष्ट शब्दावली है जैसे कि “due dilligence”, technology based measures यानि तकनीकी आधारित उपाय, इनका कहीं स्पष्ट विवरण नहीं है। इस अस्पष्टता के कारण जाँच एजेंसियाँ राजनीतिक कारणों से ग़लत व्यक्ति को सज़ा दे देती है, ये अतीत के अनुभवों से ज़ाहिर होता है। नताशा नरवाल एवं दिल्ली राज्य एन सी टी केस 2021 से भी ये पता चलता है कि इसके जजमेंट की वजह से  UAPA ग़लत तरीक़े से लागू किया गया था। वाईरल मेसेज के शुरुआत करने वाले का पता करने की आड़ में मेसेजिंग सर्विस द्वारा एंड टू एंड एनकृपशन से छेड़छाड की वजह से यूज़र की निजता और मौलिक स्वतंत्रता पर ग़लत असर पड़ता है। इस गाइडलाइन की विडम्बना ये है कि ये यूज़र की निजता को सुरक्षित करने के बजाय और भी कमज़ोर करती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को और भी चोट पहुँचाता है। डिजिटल न्यूज़ पब्लिशिंग एजेंसी (DNPA) जो भारत के बड़े न्यूज़ मीडिया एजेंसियों के 13 सदस्यों का समूह है उसने भी संवैधानिक सत्यता को चुनौती देते हुए कहा है कि नए नियम भय और निगरानी के युग को वापस ला सकते हैं ( Roy 2021) ।

इस बात से ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि IT नियम 2021 में डिजिटल संप्रभुता की तरफ़ राज्यों की बढ़ती दख़ल है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में जो मामले नागरिकों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं वो निर्णय विधि द्वारा नहीं लिए जाते बल्कि शासनिक होते है। हालाँकि आजकल ज़्यादातर राजनीतिक निर्णय , राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों द्वारा लिए जाते हैं, जो नागरिकों की आवाज़ को चुप करा देते हैं। एक तरह से ये नियम उस राजनीति का प्रतीक हैं जिन्हें हम देखते हैं, जो नागरिक को नीति निर्धारण में पीछे छोड़ देते हैं। सरकार को  डिजिटल क्षेत्र में यूज़र प्राइवेसी के विषय पर सार्वजनिक विमर्श के लिए प्लेटफ़ॉर्म खोलना चाहिए और नए प्रगतिशील विचार आमंत्रित करने चाहिए जिससे इस मुद्दे से निपटा जा सके।

 

अंत टिप्पणी

  1. Panoptic Sorting या व्यापक छँटाई, निगरानी केपीटलिस्ट व्यवस्था में सर्वदर्शी आँखों की तरफ़ इशारा करता है। ये लोगों को उनके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मूल्यों के आधार पर वर्गीकृत करता है।
  2. Fuchus ( 2013) ये तर्क देते हैं कि सोशल मीडिया यूज़र दोहरे कोम्मोडिफ़ीकेशन के लिए इस्तेमाल होते हैं। वो अपने श्रम का समय मुफ़्त में देते हैं और औनलाइन विज्ञापनों को देख कोम्मोडिफ़ीकेशन का लक्ष्य बनते हैं। ख़ुद वस्तु होते हुए भी उनकी सोच स्थायी तौर पर परिवर्तित हो जाती है।
  3. Zuboff ( 2019) ये कहते हैं कि जहाँ औद्योगिक केपीटलिस्म में प्राकृतिक सम्पदा का शोषण फ़ायदे के लिए करते हैं, निगरानी केपीटलिस्ट व्यवस्था मानवीय व्यवहार को नियंत्रित और शोषित करती है। यूज़र का व्यक्तिगत डेटा ना सिर्फ़ उनके पसंदीदा विज्ञापन दिखाने के लिए बेचा जाता है पर अन्य वस्तुओं की भी इच्छा पैदा करता है। Zuboff के अनुसार निगरानी केपीटलिस्ट व्यवस्था एक नए तरह का आर्थिक दोहन है। Zuboff (2019) को विस्तृत निगरानी केपीटलिस्ट व्यवस्था की समझ के लिए देखें।
  4. Filter Bubble Effect ये वो स्वरुप है जहाँ सोशल मीडिया फ़ीड में वैसे ही ख़बरें दिखाई देती हैं जो आपकी मौजूदा सोच और विश्वास से जुड़ी होती हैं, इस तरह से वो व्यक्ति को एक वैचारिक बुलबुले में क़ैद कर देती हैं। इसे अक्सर एको चेंबर भी कहा जाता है। अधिक जानकारी के लिए Praiser (2011) को देखें।

 

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