आजीवन कारावास की सजा भुगतने वाले कैदियों की समयपूर्व रिहाई के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार

लम्बे समय से जेल की सलाखों में कैद अपराधियों को समाज की मुख्य धारा में वापस लाने के लिए सजा में छूट(रेमीशन) दी जाती है। जेल से बाहर आकर वह सामान्य जीवन गुजार सके, इसके लिए देश के अलग-अलग राज्यों ने अपनी-अपनी गाइडलाइंस बनाई हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के दंगों से संबंधित एक मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों की सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले पर अपना निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने संगीन अपराधों में लिप्त अपराधियों
की तयशुदा अवधि से पूर्व जेल से रिहाई के कानून को एक बार फिर परिभाषित किया।

सजा में रियायत के कानूनी प्रावधान

अदालत द्वारा दी गई सजा को कम करने के लिए भारतीय दंड संहिता(सीआरपीसी) में विशेष प्रावधान है। सीआरपीसी की धारा 432 तथा 433ए के तहत राज्य सरकार कैदियों की सजा कम कर सकती है। आजीवन कारावास की सजा पाए कैदियों को 14 साल की कैद के बाद रिहा करने का प्रावधान है लेकिन इसके लिए कड़े नियम हैं। राज्य सरकारों ने कारावास समीक्षा बोर्ड का गठन किया है ताकि सजायाफ्ता कैदियों को समय-समय पर राहत प्रदान की जा सके। सजा की अवधि समाप्त होने से पूर्व ही उन्हें जेल से रिहा करके समाज में पुर्नस्थापित करने की कोशिश सरकार करती है। लेकिन कैदी को जेल से रिहा करने से पूर्व कई बिंदुओं पर गहन विचार-विमर्श किया जाता है। सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि मुजरिम ने किस तरह का अपराध किया है जिसके कारण अदालत ने उसे दोषी पाया और सजा दी। अपराध किस तरह का था। अपराध ने समाज के बड़े वर्ग पर असर डाला या यह एक आपसी झगड़े का नतीजा था या निजी कृत्य था। यह भी देखा जाता है कि यदि कैदी को रिहा कर दिया गया तो वह दोबारा अपराध तो नहीं करेगा। क्या कैदी अपराध करने की ताकत खो चुका है। कैदी को जेल की सलाखों के पीछे लम्बे समय तक रखने का परिणाम क्या होगा। कैदी तथा उसके परिवार की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को नजर में रखते हुए उसकी रिहाई पर फैसला लिया जाता है।

सजा माफ करने या सजा में छूट देने की नीति का दुरुपयोग न हो, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई निर्णयों में गाइडलाइंस तय की हैं। कैदी का जेल के अंदर व्यवहार तथा उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। जेल के अंदर किया गया उसका अच्छा कार्य, उसे समय से पूर्व रिहाई में मददगार साबित होता
है।

बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
2002 के गुजरात दंगों में 14 लोगों की हत्या और तीन महिलाओं से सामूहिक बलात्कार के दोषी 11 अपराधियों की समयपूर्व रिहाई को सुप्रीम कोर्ट ने आठ जनवरी, 2024 को दिए निर्णय में निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि गुजरात सरकार की मिलीभगत के कारण संगीन अपराध में शामिल मुजरिमों की रिहाई संभव हो सकी। 11 में से एक मुजरिम ने तथ्यों को छिपाकर और धोखाधड़ी के जरिए गुजरात सरकार का अधिकार क्षेत्र हासिल किया जबकि समयपूर्व रिहाई की अपराधियों की
अर्जी पर विचार करने के लिए महाराष्ट्र सरकार सक्षम थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जांच की थी और ट्रायल गुजरात से छीनकर मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।

जुर्माने की रकम अदा नहीं की थी गुनहगारों ने

सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की जेल के बाद मुजरिमों को जेल से रिहा करने में गुजरात सरकार की भूमिका पर बेहद तीखी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हत्यारों पर उम्र कैद के साथ जुर्माना भी लगाया गया था। जुर्माने की रकम का भुगतान किए बिना इन सभी को रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का मत था कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया और उलटा राज्य सरकार से सवाल किया कि क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट की अनुमति है, चाहे वह महिला किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो।

दंगों में 14 लोगों की गई थी हत्या

वारदात के समय बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थी। बानो और उसकी मां और बहन से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद भडक़े दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। बिलिकिस की मां और चचेरी बहन की भी सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। वारदात में कुल 14 लोग अपनी जान गंवा बैठे थे।
गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 10 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया। रिहाई होने पर सभी दोषियों का फूल- मालाओं से स्वागत किया था और इस कारण इस मामले ने सुर्खियां बटोरी थीं।

अपने ही फैसले को अमान्य किया सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2022 के फैसले के बाद ही दोषियों की सजा कम की और उन्हें रिहा कर दिया था। इस फैसले में गुजरात सरकार को अधिकार दे दिया गया था कि वह कैदियों को तयशुदा अवधि से पूर्व रिहा करने के बारे में फैसला कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आठ जनवरी, 2024 के निर्णय में मई 2022 के निर्णय को अमान्य करार दे दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तथ्यों को छिपाकर यह आदेश हासिल किया गया था।

क्या है महाराष्ट्र सरकार की कैदियों को छोडऩे की नीति

कैदियों की सजा में कमी करने की महाराष्ट्र सरकार की नीति अन्य राज्यों के मुकाबले अलग है। महाराष्ट्र सरकार ने 2008 में नए दिशा-निर्देश तैयार किए। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध करने वालों को यदि उम्र कैद की सजा मिली है तो उन्हें 28 साल की सजा से पहले रिहा नहीं किया जा सकता। आजीवन कारावास की सजा पाए मुजरिम 28 साल से पहले जेल से रिहा नहीं किए जा सकते। वैसे, गुजरात सरकार ने 1992 की नीति के तहत कैदियों को रिहा किया था जो अमल में नहीं थी। 2014
में गुजरात सरकार ने नई नीति बनाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करके 1992 की नीति को लागू बताया गया और आदेश हासिल कर लिया गया।


Default Author Image

Vivek Varshney

Found this post insightful? Share it with your network and help spread the knowledge.

Suggested Reads

An Approximation of Employment-Centric Social Security Frameworks in India

The ongoing design process of the social security framework best suited to the platform-based gig economy in India is a testament to the changing terrain of increasingly complex industrial relations in India. At stake is the validity of the traditional tripartite model of industrial relations and a push for creative solutions.

चर्चित रहा जस्टिस धनंजय चंद्रचूड का कार्यकाल

भारत के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड का दो वर्ष का कार्यकाल सुर्खियों में रहा। वैसे तो वह आठ साल से अधिक समय तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे लेकिन सीजेआई के रूप में उनके दो वर्ष लगातार चर्चा में रहे। सीजेआई बनने से पहले ही जस्टिस चंद्रचूड ने कई ऐसे […]

Impact of the Agnipath Scheme on Indo-Nepal Relations, China’s Involvement, and Way Forward for India

Introduction The relations between South Asian countries are laden with historical complexities and shifting strategic concerns. India’s Agnipath scheme is a drastic change in military recruitment policy on the domestic and international levels. In this article, we will analyse the effects of the Agnipath scheme on Indo-Nepal relations, discuss the change in Nepal’s inclination towards […]

एक देश, एक चुनाव: क्रियान्वयन आसान नहीं होगा 

 देश में लोक सभा और विधान सभा के चुनाव एकसाथ कराने के प्रस्ताव को केन्द्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। केन्द्र सरकार ने कहा है कि संसद शीतकालीन सत्र में विधेयक लाएगी। एक राष्ट्र, एक चुनाव का नारा जितना आकर्षक लगता है, इसे लागू करना उतना ही मुश्किल है। सभी 28 राज्यों और कुछ […]

Gender Budgeting and Electoral Politics in India: From Welfare to Empowerment

Introduction Gender-responsive budgeting (GRB) has emerged as a vital tool in addressing gender disparities, by embedding gender considerations into fiscal policies and transforming resource allocation for women-centric programs. Introduced in India in 2005-06, GRB marked a shift from the “Women in Development” approach to a broader “Gender and Development” perspective. The National Institute of Public […]