एक कानूनी प्रक्रिया के तहत निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने का विधेयक संसद में पेश तो कर दिया गया है लेकिन इस पर अभी चर्चा नहीं हो पाई है। संसद में चर्चा होने से पहले ही यह विधेयक सुर्खियों में आ गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचन आयोग का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। टी.एन. शेषन ने निर्वाचन आयोग को लोकतंत्र का पांचवा स्तम्भ स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए उन्होंने जो मुहिम छेड़ी, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। लोकतंत्र की जड़े मजबूत करने और भारतीय निर्वाचन आयोग को दुनियाभर में एक अलग पहचाने दिलाने में उनकी भूमिका अग्रणी रही।
विधेयक क्यों है महत्वपूर्ण
निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अभी तक कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं थी। संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत नियुक्तियों को अमलीजामा पहनाने का प्रावधान है लेकिन आजादी के बाद से इस संबंध में कानून नहीं बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस साल दो मार्च को दिए फैसले में चयन समिति को यह जिम्मेदारी सौंपी। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चयन समिति का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोक सभा में विपक्ष के नेता को सदस्य मनोनीत किया गया। लोक सभा में विपक्ष का नेता न होने की स्थिति में विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता को चयन समिति में शामिल करने का निर्देश दिया गया।
प्रस्तावित चयन समिति में सीजेआई नहीं
मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त(नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) विधेयक, 2023 दस अगस्त को राज्य सभा में पेश किया गया। सितंबर 2023 में संसद के विशेष सत्र में भी इसे चर्चा के लिए लाया जाना था। यह कार्यसूची में भी था लेकिन महिला आरक्षण विधेयक पर लम्बी बहस के कारण इस पर चर्चा नहीं हो सकी। संसद के शरदकालीन सत्र में इसे लाया जाएगा या नहीं, यह पूरी तरह सरकार पर निर्भर करता है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने 378 पृष्ठ के निर्णय में तीन सदस्यीय चयन समिति के गठन का निर्देश दिया था। विधेयक में सीजेआई के स्थान पर प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री को चयन समिति में रखने का प्रस्ताव है। ऐसे में विपक्ष के नेता की चयन समिति में स्थिति औपचारिक ही रह जाएगी। कई पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों का मत है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन तीन सदस्यीय चयन समिति का सुझाव दिया था, उसे अमल में लाना चाहिए जिससे नियुक्तियां सिर्फ पारदर्शी और निष्पक्ष ही न हो बल्कि दिखाई भी दें। सीबीआई और लोकायुक्त की चयन समिति में सीजेआई शामिल रहते हैं। इसलिए निर्वाचन आयुक्त की नियुक्तियों में भी उनकी भागीदारी समूची चयन प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने में सहायक साबित होगी।