भारत के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड का दो वर्ष का कार्यकाल सुर्खियों में रहा। वैसे तो वह आठ साल से अधिक समय तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे लेकिन सीजेआई के रूप में उनके दो वर्ष लगातार चर्चा में रहे। सीजेआई बनने से पहले ही जस्टिस चंद्रचूड ने कई ऐसे फैसले दिए जिससे उनकी छवि एक उदारवादी और प्रगतिशील जज की बनी। उनके कई अहम फैसलों से भारतीय न्यायशास्त्र को मजबूती मिली लेकिन कुछ निर्णय विवादों में भी रहे जिससे उनकी छवि को गहरा धक्का लगा।
जस्टिस चंद्रचूड के कई फैसलों से उनकी विद्वता के दर्शन होते हैं। इसमें कोई दे राय नहीं कि वह अत्यंत प्रतिभाशाली जज रहे। उन्हें कानून की सभी विधाओं पर महारत हासिल है। कानून की बारीकियों के अलावा उन्हें इतिहास और भारत की सामाजिक परिस्थितियों की गहरी जानकारी थी। भारत में आजादी के बाद सामाजिक परिवर्तन हुए हैं लेकिन देश में सामाजिक रूढि़वाद और लिंग भेद अभी भी अपने पैर जमाए हुए है, इसकी उन्हें गहरी समझ थी। सिर्फ कानून ही नहीं, अंग्रेजी भाषा पर उनकी पकड़ अभूतपूर्व थी। जजमेंट लिखने की उनकी अदभुत कला ने उनके आलोचकों को भी उनका मुरीद बना दिया। उनके कुछ अहम फैसलों का विवरण देना जरूरी है।
महत्वपूर्ण फैसले
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य में उन्होंने महिलाओं को मंदिर में पूजा-अर्चना का अधिकार दिया। भगवान अयप्पा के मंदिर में उन महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था जो मासिक धर्म की परिधि में आती हैं। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि लिंग के आधार पर महिलाओं से भेदभाव असंवैधानिक है।
जोसेफ शाइनी बनाम भारत सरकार के मामले में जस्टिस चंद्रचूड ने विवाहेत्तर संबंधों(एडल्टरी) को आपरधिक कानून के दायरे से बाहर कर दिया। उन्होंने कहा कि एडल्टरी का इस्तेमाल तलाक के मामलों के लिए किया जा सकता है लेकिन यह भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) का भाग नहीं हो सकता।
नवतेज जौहर बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों को सहमति के आधार पर यौन संबंध बनाने का अधिकार दिया। दो वयस्क एकांत में आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध स्थापित कर सकते हैं। इससे पहले यह आईपीसी की धारा 377 के तहत यह अपराध था। दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकों के पक्ष में फैसला दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट की वृहद पीठ ने अपने ही फैसले को पलटा। मुख्य फैसला जस्टिस चंद्रचूड ने लिखा।
ईआ कुमार एवं अन्य बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच की ओर से जस्टिस चंद्रचूड ने शहरी बेघरों के लिए शेल्टर होम बनाने का आदेश दिया ताकि सर्दियों में उन्हें सडक़ पर रात न बितानी पड़े। कोर्ट ने कहा कि इस काम के लिए निर्धारित कोष में धनराशि है लेकिन उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस कैलाश गंभीर की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया जिसे आश्रय गृहों का निरीक्षण तथा उन्हें दुरुस्त करने का दायित्व सौंपा।
जस्टिस केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया। संविधान पीठ की ओर से जस्टिस चंद्रचूड ने फैसला दिया। विवाह, पारिवारिक मामलों, निजी रिश्तों आदि में निजता को अहम माना गया।
विवादित फैसले
जस्टिस चंद्रचूड के कुछ फैसलों की कानूनविदों ने आलोचना की। इनमें अधिसंख्य राजननैतिक रूप से अहम फैसले थे।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मामले में जस्टिस चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने भारतीय सर्वेक्षण विभाग को मस्जिद के सर्वे की अनुमति प्रदान कर दी। कानूनविदों का मानना है कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाया गया था। इस कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल में बदलाव नहीं किया जा सकता। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के कारण देशभर की अदालतों में इस तरह के केस दायर किए जाने लगे। उत्तर-प्रदेश के संभल में मस्जिद के सर्वे को लेकर दंगे भडक़ गए जिससे कई लोगों की जान चली गई। उनके बाद बने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने देशभर की अदालतों पर चल रहे इस तरह के मामलों की सुनवाई पर विराम लगा दिया।
महाराष्ट्र विधान सभा में विधायकों के दल-बदल के मामले में भी जस्टिस चंद्रचूड के फैसले पर कानून के जानकारों ने अलग राय व्यक्त की। जस्टिस चंद्रचूड ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के खिलाफ सख्त टिप्पणी की और कहा कि उन्हें राजनैतिक क्षेत्र में दखल नहीं देनी चाहिए थी। लेकिन उद्धव ठाकरे की सरकार की बहाल करने से इनकार कर दिया।
चुनावी बांड योजना को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने असंवैधानिक करार दिया लेकिन कई हजार करोड़ के लेन-देन की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की याचिका को खारिज कर दिया। चुनावी बांड स्कीम में राजनीतिक दलों को चंदा देने का खुलासा सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद ही आ सका। कई ऐसी कंपनियों ने सियासी दलों को चंदा दिया जो अपने बेलेंस शीट में वित्तीय नुकसान दर्शा रही थी।
अयोध्या विवाद पर संविधान पीठ की ओर से जस्टिस चंद्रचूड ने ही मुख्य फैसला दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के ही कुछ रिटायर्ड न्यायाधीशों ने गलत बताया। जस्टिस चंद्रचूड के साथ सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने अयोध्या विवाद पर दिए गए निर्णय को न्याय शास्त्र के सिद्धांतों के विपरीत कहा है।
चंडीगढ़ के महापौर के चुनाव में हुई धांधली का सीजेआई चंद्रचूड ने खुद पर्दाफाश किया था। चुनाव कराने वाले पीठासीन अधिकारी के खिलाफ भरी अदालत में टिप्पणी की गई और उसे फटकार लगाई गई। भारतीय जनता पार्टी के महापौर को हटाकर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को विजयी घोषित करके उसे मेयर घोषित किया। पीठासीन अधिकारी के खिलाफ सिर्फ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत जांच का आदेश दिया गया। कानून के अनुसार उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सकती थी।
दिल्ली और केन्द्र सरकार के बीच अधिकारों को लेकर चली आ रही लम्बी लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले आ चुके हैं। दोनों ही निर्णय दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पक्ष में हैं। दिल्ली सरकार को सरकारी अफसरों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर का अधिकार केन्द्र शासित प्रदेश की निर्वाचित सरकार को दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद मई 2023 में केन्द्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार अपने पास रख लिया। अध्यादेश को भी चुनौती दी गई लेकिन इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। जस्टिस चंद्रचूड दोनों फैसलों में शामिल रहे थे। उनके लिए इस विवाद को हमेशा के लिए सुलझाने का अच्छा मौका था। जल्द सुनवाई की बार-बार की मांग के बाद भी इस मामले को सूचीबद्ध नहीं किया गया।
न्यायाधीशों को राजनैतिक नेताओं और से दूरी बनाए रखने का एक अलिखित संवैधानिक दायित्व है। न्यायपालिका की निष्पक्षता के लिए न्यायाधीशों को राजनैतिक नेताओं और संवैधानिक पद पर आसीन विशिष्ठ व्यक्तियों से सिर्फ औपचारिक संबंध रखना पड़ता है। गणेश उत्सव के निजी कार्यक्रम के दौरान सीजेआई के सरकारी निवास पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति से जस्टिस चंद्रचूड विवादों में घिर गए।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम के जरिए की जाती है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद कई प्रस्तावित नामों पर केन्द्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी। इस विवाद पर एक जनहित याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट के सवालों ने केन्द्र सरकार को असहज कर दिया था। लेकिन यह मामला अचानक जस्टिस कौल की अगुवाई वाली बेंच से छीन लिया गया। चूंकि सीजेआई मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। वह ही तय करते हैं कि अमुक केस किस कोर्ट में जाएगा। इसलिए जस्टिस चंद्रचूड पर उंगलियां उठीं।
सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले जस्टिस चंद्रचूड ने विरासत को लेकर भी बयान दिया। उनका कहना था कि उनके अवकाश ग्रहण करने के बाद लोग उन्हें किस तरह याद रखेंगे, यह देखना होगा। न्यायपालिका के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनके निर्णयों के जरिए ही जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट के कई न्यायाधीशों को उनकी न्यायिक विद्वता के लिए आज भी याद किया जाता है। उनके निर्णयों का हवाला दिया जाता है। जस्टिस चंद्रचूड के कई निर्णय इतिहास में दर्ज हो गए।