सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने भारत के आपराधिक न्यायशास्त्र की तस्वीर बदल दी है। प्रबीर पुरकायस्थ बनाम दिल्ली सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने गिरफ्तारी का आधार बताना लाजमी कर दिया है। किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस या जांच एजेंसी को यह लिखित रूप से बताना होगा कि अमुक शख्स की गिरफ्तारी क्यों जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देशभर की अदालतों पर लागू हो गया है। अभियुक्त की गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे सबसे पहले ट्रायल कोर्ट या मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है तो पुलिस को यह बताना होगा कि व्यक्ति को हिरासत में लेने का आधार क्या है।
क्या है प्रबीर पुरकायस्थ का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई, 2024 को दिए निर्णय में कहा है कि अभियुक्त को हिरासत में लेते समय पुलिस या जांच एजेंसी को गिरफ्तारी का आधार बताना होगा। कानून के तहत यह अनिवार्य है। आरोपपत्र दायर करने से गिरफ्तारी या रिमांड को वैधता नहीं मिल जाती है। जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने न्यूजक्लिक के संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक की गिरफ्तारी को अवैध बताया और उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक मामले में यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरका-यस्थ की गिरफ्तारी को कानून की नजर में अवैध करार दिया और उन्हें हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 4 अक्टूबर, 2023 के रिमांड आदेश के पारित होने से पहले पुरकायस्थ या उनके वकील को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप से सूचना प्रदान नहीं की गई थी, जो उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड को निष्प्रभावी करता है। सुप्रीम कोर्ट ने पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और उसके बाद उनके रिमांड का आदेश और इसी तरह दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश को भी कानून की नजर में अमान्य घोषित किया। अदालत ने पुरकायस्थ की याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें हाई कोर्ट के 13 अक्टूबर, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मामले में गिरफ्तारी और उसके बाद पुलिस रिमांड के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने तीन अक्टूबर, 2023 को उन्हें गिरफ्तार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि, हम अपीलकर्ता को मुचलका प्रस्तुत करने की आवश्यकता के बिना रिहा करने का निर्देश देने के लिए राजी हो जाते, लेकिन चूंकि आरोप पत्र दायर किया गया है, इसलिए हमें यह निर्देश देना उचित लगता है कि अपीलकर्ता को निचली अदालत की संतुष्टि के मुताबिक जमानती मुचलका देने पर हिरासत से रिहा किया जाए।
संविधान के अनुच्छेद 22(1) में है यह प्रावधान
सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए तथा पीएमएलए कानूनों के प्रावधानों का मूल आधार संविधान के अनुच्छेद 22(1) में पाया। अदालत का मत है कि यह दोनों कानून हो या कोई भी अन्य कानून जिसके तहत व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया हो, उसे गिरफ्तारी का आधार बताना इसलिए जरूरी है ताकि वह अपने वकील से सलाह-मशविरा कर सके। पुलिस कस्टडी का विरोध कर सके और जमानत की अर्जी दायर कर सके। अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि वह हिरासत में लेने का सिर्फ कारण ही बल्कि आधार जाने। संविधान के अनुच्छेद 20,21 और 22 में जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पवित्र एवं अहम माना गया है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अतिक्रमण को हमेशा से गलत ठहराया है। आरोप-पत्र दायर करने से पुलिस की अवैध तरीके से की गई गिरफ्तारी को जायज नहीं कहा जा सकता।
रिमांड देने वाले जज का दायित्व
प्रबीर पुरकायस्थ मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी नहीं की लेकिन अदालत के फैसले से ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों और विशेषरूप से मजिस्ट्रेट की जवाबदेही बढ़ गई है। अब उसे अपने दायित्वों के प्रति सतर्क रहना होगा। रिमांड की अर्जी पर सुनवाई से पहले मजिस्ट्रेट पुलिस से गिरफ्तारी का आधार पूछ सकता है। प्रबीर पुरकायस्थ को तीन अक्टूबर, 2023 को शाम पांच बजकर 45 मिनट पर गिरफ्तार किया गया था। जांच अधिकारी उन्हें 24 घंटे के अंदर संबंधित जज की अदालत में पेश कर सकता था। चूंकि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए शख्स को विशेष अदालत के समक्ष पेश किया जाता है, लिहाजा उसे भी निर्धारित कोर्ट में पेश किया गया। दिल्ली पुलिस ने शाम होने के इंतजार नहीं किया बल्कि तडक़े छह बजे ही विशेष न्यायाधीश के निवास पर पेश कर दिया। उसके वकील को भी सूचना नहीं दी गई। एक ऐसे वकील को रिमांड वकील के रूप में पेश कर दिया गया जिसे प्रबीर ने एंगेज नहीं किया था। जांच अधिकारी के पास प्रबीर के वकील का फोन नंबर था लेकिन उसे सूचित किए बिना जज के निवास पर पेश करके उसे सात दिन के रिमांड पर ले लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त के वकील की अनुपस्थिति में पारित किया गया रिमांड आदेश गैर कानूनी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तयशुदा कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया। समूची प्रक्रिया अवैध है। पुलिस को रिमांड की अर्जी प्रबीर के वकील को प्रदान करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उसे बेहद गुप्त तरीके से सुबह-सुबह जज की निवास स्थान पर पेश किया गया। प्रबीर के वकील को मोबाइल फोन के जरिए रिमांड की अर्जी भेजी गई। लेकिन यह सब औपचारिकता रिमांड का आदेश पारित करने बाद निभाई गई। इससे साफ है कि समूची प्रक्रिया का घोर उल्लंघन किया गया। गिरफ्तारी का कारण और गिरफ्तारी का आधार- दोनों में अंतर सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी का आधार और गिरफ्तारी का कारण-दोनों में अंतर को रेखांकित किया। दोनों समान नहीं हैं। गिरफ्तारी के कारण सभी मामलों में लगभग समान होते हैं। जैसे, अभियुक्त को और किसी अपराध करने से रोकना। अपराध की जांच के लिए उसकी गिरफ्तारी करना। अपराध से जुड़े सबूतों को नष्ट करने से बचाना। गवाहों को धमकी या लालच देने के आशंका को खत्म करने या कोर्ट में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित न हो सके। जबकि गिरफ्तारी का आधार बुनियादी तथ्यों पर केन्द्रित होता है। केस के तथ्यों को सामने लाकर ही गिरफ्तारी का आधार तय किया जा सकता है। गिरफ्तारी का कारण और गिरफ्तारी का आधार-दोनों में अंतर है।