सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पिछले लगभग 30 वर्ष से हाई कोर्ट और शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्तियां करता आ रहा है। 1993 में अपने ही फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार सरकार से छीनकर अपने पास ले लिया था। न्यायाधीशों की नियुक्तयों का कॉलेजियम सिस्टम शुरू से ही विवादों में रहा है। इसकी मुख्य वजह नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी है। कॉलेजियम के बारे में कहा जाता है कि वह उन्हीं वकीलों को जज के लिए चुनते हैं जिनकी पेशेवर दक्षता से वह वाकिफ हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों, वरिष्ठ वकीलों के परिवार के सदस्यों को नियुक्तियों में तरजीह दी जाती है। वकालत के पेशे में खासा नाम कमाने और योग्यता के बावजूद अधिसंख्य वकील बेंच तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि उनके लिए कोई लॉबिंग नहीं करता।
कैसे होती हैं कॉलेजियम सिस्टम के तहत न्यायाधीशों की नियुक्तियां
कॉलेजियम सिस्टम की खामियों को गिनाने से पहले हमें उसकी कार्यप्रणाली पर गौर करना होगा। सुप्रीम कोर्ट और देश के विभिन्न हाई कोर्टों में कॉलेजियम के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश सरकार से की जाती है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में गठित कॉलेजियम में दो वरिष्ठ जज शामिल होते हैं। यह कॉलेजियम उन वकीलों को जज बनाने की सिफारिश करता है जो हाई कोर्ट तथा ट्रायल कोर्ट में वकालत करते हैं। हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के दो तिहाई स्थान सीधे वकीलों को पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं जबकि एक तिहाई जज जिला अदालतों से पदोन्नति पाकर हाई कोर्ट पहुंचते हैं। हाई कोर्ट का तीन सदस्यीय कॉलेजियम जिन नामों की सिफारिश करता है, उस पर संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल की संस्तुति आवश्यक है। उसके बाद इसे केन्द्र सरकार के पास भेज दिया जाता है। केन्द्र सरकार गुप्तचर ब्यूरो(आईबी) की रिपोर्ट के साथ यह नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेज देती है। सुप्रीम कोर्ट का तीन सदस्यीय कॉलेजियम सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद चुनिंदा नामों को सरकार के पास नियुक्ति के लिए भेज देता है। सरकार कॉलेजियम की सिफारिश के आधार पर नियुक्ति करती है लेकिन केन्द्र को यह अधिकार है कि वह किसी अमुक व्यक्ति को जज बनाने की सिफारिश को अस्वीकार कर दे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अस्वीकृत नाम को दोबारा नियुक्ति के लिए भेजता है तो केन्द्र सरकार को इसे मानना पड़ेगा।
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट का पांच सदस्यीय कॉलेजियम सर्वोच्च अदालत में नियुक्तियों की अनुशंसा करता है। सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नति पाने वालों में अधिसंख्य हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तथा जज होते हैं। लेकिन वकीलों को भी सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया जा सकता है।